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नेतन्याहू II

 

इजराइल में छठवीं बार PM बनेंगे नेतन्याहू डेडलाइन खत्म होने के 10 मिनट पहले गठबंधन का ऐलान, अब तक की सबसे कट्टरपंथी सरकार

बेंजामिन नेतन्याहू इजराइल की 37वीं सरकार में प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। बुधवार देर रात डेडलाइन खत्म होने के महज 10 मिनट पहले उन्होंने राष्ट्रपति इसाक हर्जोग को फोन किया और सरकार बनाने की दावेदारी पेश की।

इसके बाद ट्वीट किया। कहा- सारी चीजें मैनेज हो गई हैं। इजराइल में गठबंधन सरकारों का ही दौर ज्यादा रहा है। इस बार भी नेतन्याहू 6 दलों की सरकार की कमान संभालने जा रहे हैं। इसे इजराइली इतिहास की अब तक की सबसे कट्टरपंथी सरकार बताया जा रहा है। नेतन्याहू प्रधानमंत्री मोदी को अपना सबसे अच्छा दोस्त बताते रहे हैं और इलेक्शन कैंपेन में उन्होंने भारत-इजराइल रिश्तों और मोदी का कई बार जिक्र भी किया था।

एक साल बाद ही सत्ता में वापसी

·         नेतन्याहू को संसद में बहुमत खोने की वजह से पिछले साल इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद 1 नवंबर को चुनाव हुए और नेतन्याहू की लिकुड पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। हालांकि, उसके पास 61 का जादुई आंकड़ा नहीं था। लिहाजा 6 दलों का समर्थन हासिल किया।

·         टाइम्स ऑफ इजराइलऔर यरूशलम पोस्टकी रिपोर्ट्स के मुताबिक- नेतन्याहू की नई सरकार इजराइली इतिहास की सबसे कट्टपंथी सरकार होगी। इसमें शामिल सभी 6 पार्टियां फिलिस्तीन के मुद्दे पर बेहद कट्टरपंथी नजरिया रखती हैं। ये सभी यहूदी मजहबी दल हैं।

·         लिकुड पार्टी के चीफ नेतन्याहू कुल 15 साल प्रधानमंत्री रह चुके हैं। यह उनका 6th टर्म होगा। इजराइली सियासत में अब तक कोई नेता इतने लंबे वक्त तक सत्ता के शिखर पर नहीं रह सका है।

बेंजामिन नेतन्याहू इजराइल की 37वीं सरकार में प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। बुधवार देर रात डेडलाइन खत्म होने के महज 10 मिनट पहले उन्होंने राष्ट्रपति इसाक हर्जोग को फोन किया और सरकार बनाने की दावेदारी पेश की।

इसके बाद ट्वीट किया। कहा- सारी चीजें मैनेज हो गई हैं। इजराइल में गठबंधन सरकारों का ही दौर ज्यादा रहा है। इस बार भी नेतन्याहू 6 दलों की सरकार की कमान संभालने जा रहे हैं। इसे इजराइली इतिहास की अब तक की सबसे कट्टरपंथी सरकार बताया जा रहा है। नेतन्याहू प्रधानमंत्री मोदी को अपना सबसे अच्छा दोस्त बताते रहे हैं और इलेक्शन कैंपेन में उन्होंने भारत-इजराइल रिश्तों और मोदी का कई बार जिक्र भी किया था।

एक साल बाद ही सत्ता में वापसी

·         नेतन्याहू को संसद में बहुमत खोने की वजह से पिछले साल इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद 1 नवंबर को चुनाव हुए और नेतन्याहू की लिकुड पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। हालांकि, उसके पास 61 का जादुई आंकड़ा नहीं था। लिहाजा 6 दलों का समर्थन हासिल किया।

·         टाइम्स ऑफ इजराइलऔर यरूशलम पोस्टकी रिपोर्ट्स के मुताबिक- नेतन्याहू की नई सरकार इजराइली इतिहास की सबसे कट्टपंथी सरकार होगी। इसमें शामिल सभी 6 पार्टियां फिलिस्तीन के मुद्दे पर बेहद कट्टरपंथी नजरिया रखती हैं। ये सभी यहूदी मजहबी दल हैं।

·         लिकुड पार्टी के चीफ नेतन्याहू कुल 15 साल प्रधानमंत्री रह चुके हैं। यह उनका 6th टर्म होगा। इजराइली सियासत में अब तक कोई नेता इतने लंबे वक्त तक सत्ता के शिखर पर नहीं रह सका है।

·         वादे पूरे करने में नाकाम
जून 2021 में इजराइल में सत्ता बदली थी, तब राम पार्टी (Ra’am Party) पहली अरब पार्टी थी, जो किसी इजराइली सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा बनी। कट्टरवादी नफ्ताली बेनेट और फिर बाद में लिबरल येर लैपिड इस सरकार के प्रधानमंत्री थे। ये गठबंधन बहुत लंबा नहीं चल सका। शिक्षा और रोजगार में अरबों को बराबरी का मौका देने के वादे पूरे नहीं हो पाए।

·         इजराइली चुनावों में तीन प्रमुख अरब दल भी हिस्सा लेते हैं। ये हैं हादाश ताल, राम (यूनाइटेड अरब लिस्ट) और बालाड। इस बार अरब दलों में फूट भी पड़ गई है। सितंबर में उम्मीदवारों के नाम घोषित करने की समय सीमा खत्म होने से ठीक पहले बालाड ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। यह इलेक्शन में कुछ खास नहीं कर पाई।

·         क्यों होते हैं बार-बार चुनाव
इजराइल की संसद में कुल 120 सीटें हैं। बहुमत के लिए 61 सीटें चाहिए। देश में मल्टी पार्टी सिस्टम है और छोटी पार्टियां भी कुछ सीटें जीत जाती हैं। इसी वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत पाना आसान नहीं होता। लिहाजा, अकसर प्री या पोस्ट पोल अलायंस होते हैं। इसके बावजूद सरकारें चल नहीं पातीं, क्योंकि सियासी हालात काफी मुश्किल हैं। कई मुद्दों पर पार्टियों में मतभेद बने रहते हैं।

भारत-अरब वर्ल्ड को फायदा, फिलिस्तीन को नुकसान

·         नेतन्याहू के सत्ता में आने से भारत और गल्फ नेशन्स को फायदा हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी और नेतन्याहू की दोस्ती मशहूर है। नेतन्याहू जब सत्ता में नहीं थे, तब भी दोनों नेता सोशल मीडिया या फोन के जरिए संपर्क में रहते थे।

·         डोनाल्ड ट्रम्प के दौर में इजराइल और अरब देशों के बीच अब्राहम अकॉर्डसाइन हुआ था। UAE समेत चार मुस्लिम देशों ने इजराइल से डिप्लोमैटिक रिलेशन शुरू किए थे। माना जा रहा है कि अब सऊदी अरब भी बहुत जल्द इजराइल को बतौर राष्ट्र मान्यता दे सकता है। अमेरिका भी उस पर दबाव डालेगा। ईरान के मुद्दे पर ये सभी देश हमलावर रुख जारी रखेंगे।

·         नेतन्याहू उतने कट्टरपंथी नेता नहीं माने जाते, जितने इस बार उनके अलायंस में शामिल लीडर हैं। लिहाजा, फिलिस्तीन का मसला फिर तनाव बढ़ा सकता है। ये तमाम नेता ज्यूडिशियल सिस्टम को यहूदियों के हिसाब से बेहतर बनाना चाहते हैं। इसके अलावा फिलिस्तीन पर सख्त पाबंदियों की बात करते हैं। फिलिस्तीन को वेस्ट बैंक यानी पश्चिमी छोर से खदेड़ना चाहते हैं। जाहिर है ये सभी मुद्दे हमास जैसे आतंकी संगठन से तनाव बढ़ाएंगे और जंग का खतरा बढ़ेगा। ईरान तो हमास और फिलिस्तीन को हथियारों समेत हर तरह की मदद देता आया है।

 

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